राजेश खन्ना पर विशेष
(करजाईन बाज़ार .कॉम के ओर से श्रधांजलि )
फिल्मों के आखिर में मर जाने वाले नायक के अविस्मरणीय रोल अदा कर अमर हो गए बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना यानी अपने काका नहीं रहे। अपनी यादगार फिल्म 'आनंद' के मशहूर डायलॉग, 'बाबू मोशाय, जिंदगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए' को उन्होंने भरपूर जिया। शोहरत की बुलंदियों से गर्दिश के गुबार तक जिंदगी के एक-एक पल का आनंद लिया।
उनसे पहले भी मायानगरी में स्टार हुए, जिनके करोड़ों फैन थे, लेकिन जिस तरह की 'मास हिस्टीरिया' उनके लिए देखी गई, वह बेमिसाल थी। राज कपूर, दिलीप कुमार और देवानंद या फिर राजेंद्र कुमार और शम्मी कपूर की 'मैनरिज्म' की भी महिलाएं दीवानी थी, लेकिन चहारदीवारी में बंद। उनकी अगली पीढ़ी को राजेश खन्ना के रूप में एक ऐसा नायक मिला जिसके लिए सारी बंदिशें तोड़ी जा सकती हैं। सड़क के किनारे उनका घंटों इंतजार किया जा सकता है। उनकी कार के आगे लेटा जा सकता है, उसे चूमा जा सकता हैं। यहां तक कि उन्हें खून से खत भी लिखे जा सकते हैं।
उन्होंने न तो किसी की नकल की और न ही कोई उनकी कॉपी कर पाया। अपनी स्टाइल के बिल्कुल जुदा फनकार। अपना बना लेने वाली मुस्कुराहट, शरारत से लेकर प्यार तक की भाषा बोलती चंचल आंखें, डांस का अलग स्टाइल, सब कुछ ट्रेडमार्क। हाल के वर्षो में जब भी मंच पर आए तो वहां वही अक्खड़पन, 'आज मैं हूं जहां, कल कोई और था। ये भी एक दौर है, वो भी एक दौर था'।
वर्ष 1969-72 तक 15 सोलो सुपरहिट फिल्मों का रिकॉर्ड बनाने वाले काका का जादू और जलवा कभी खत्म नहीं होगा। टैलेंट हंट के जरिए बॉलीवुड में एंट्री करने के बाद शुरुआत में मिली फिल्में हिट नहीं रही, लेकिन उनमें आने वाले सितारे की झलक दिख गई थी। 1969 में शर्मिला टैगोर के साथ आई 'आराधना' ने उन्हें रातोरात रोमांटिक हीरो के रूप में स्थापित कर दिया। इसके बाद तो उन्होंने सुपरहिट फिल्मों की झड़ी लगा दी। संगीतकार आरडी बर्मन और गायक किशोर कुमार के साथ उनकी जोड़ी जैसी सफलता फिर किसी त्रयी को नहीं मिली। अमिताभ युग में परदे के पीछे जाने के बाद वापसी की। दूसरी पारी में भी 'थोड़ी सी बेवफाई', 'आखिर क्यों', 'अगर तुम न होते', 'अमृत' और 'अवतार' में छाप छोड़ी और राजनीति में भी हाथ आजमाया। 1992 में कांग्रेस के टिकट पर दिल्ली से सांसद बने।
इस साल अप्रैल से बीमार चल रहे इस अभिनेता को दो दिन पहले मुंबई के लीलावती अस्पताल से छुंट्टी मिली थी। उसके बाद से बांद्रा स्थित उनके बंगले 'आशीर्वाद' में उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। बुधवार को दोपहर में उन्होंने वहीं अंतिम सांस ली। आखिरी वक्त में पत्नी डिंपल कपाड़िया [बॉबी फेम], बेटियां [ट्विंकल और रिंकी] और दामाद अक्षय कुमार [ट्विंकल के पति] साथ में थे।
लड़कियां खुद को कहती थीं मिसेज खन्ना
नई दिल्ली [जागरण न्यूज नेटवर्क]। अगर पिछली सदी के आठवें दशक की महिलाओं से राजेश खन्ना के बारे में पूछा जाए तो आज भी उनके गाल सुर्ख हो उठते हैं। उन्हें अपनी जवानी के दिन याद आ जाते हैं। यह राजेश खन्ना के स्टारडम का जादू था, जो उन लड़कियों में कायम था, जो 1969 में जवान हो चुकी थीं। जिनके दिल की धड़कनों में उनका नाम बसता था। उनकी फोटो देखकर ही उनके दिल में कुछ-कुछ होने लगता था। तब न मोबाइल होता था न ही फेसबुक या ट्विटर। न ही सैकड़ो टीवी चैनल। उस दौर में राजेश खन्ना की सफेद कार दीवानियों के चुंबन से लाल हो जाया करती थी।
बताया जाता है कि उनकी दीवानगी ऐसी थी कि कुंवारी लड़कियां तकिए के नीचे उनका फोटो रखकर सोती थीं। काका के पास लड़कियों द्वारा खून से अपने प्यार का इजहार किए सैकड़ों खत आते थे। दीवानगी का आलम यह था कि सैकड़ों लड़कियों ने अपनी अल्हड़ जवानी में अभिनेता की तस्वीर केसाथ ब्याह रचा कर खुद को मिसेज राजेश खन्ना घोषित कर दिया था।
वह ऐसा दौर था जब ज्यादातर लड़किया अपने परिवार की पसंद से शादी करती थीं और अपने पति का चेहरा सुहागरात के बाद देख पाती थीं। शादी के बाद लड़कियों की चाहत होती थी कि उनका पति राजेश खन्ना जैसा हो।
टॉकीज एकमात्र जरिया
उस वक्त फिल्म देखने का एक मात्र साधन सिंगल स्क्रीन टॉकीज हुआ करते थे, जो हर राज्य के चुनिंदा शहरों में हुआ करते थे। फिल्मों का प्रचार देसी तरीके से होता था। एक तागे के दाएं-बाएं फिल्म के बड़े-बड़े पोस्टर लगा दिए जाते थे। ये पोस्टर पेंटर उन दिनों पेंट करा करते थे। ऐसे तागों पर एक आदमी हाथ में लाउडस्पीकर लिए, शहर की गली-गली घूमता और कहता कि फला टॉकीज में फला फिल्म लगी है।
कहा जाता था फिल्म देखने जरूर आइएगा। साथ में पप्पू के चाचा-चाची, मुन्ना की बुआ और टिंकू के मामा को लाना मत भूलना। तागे के जाने के बाद घरों के आंगन में बैठे बड़े-बुजुर्ग सिनेमा को समाज को बिगाड़ने का दोषी बताते और खूब गरियाते। वहीं युवा महिलाएं इन फिल्मों को अपने पतियों के साथ देखने की बातें करतीं। उस समय पति आसानी से फिल्म नहीं दिखाते थे। यही नहीं उस दौर में फिल्मी पत्रिकाएं खरीदना यानी लड़का या लड़की के बिगड़ने की निशानी होती थी। वहीं लड़के राजेश स्टाइल की हेयर स्टाइल या कपड़े पहनने की कोशिश करते।
विज्ञापन में बयां की दास्तान
हाल में राजेश खन्ना की जिंदगी के तमाम पहलुओं को लेकर एक पंखे का विज्ञापन आया है। यह दरअसल बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार की जिंदगी की दास्ता कहता है। विज्ञापन में कमजोर, कांपती आवाज में राजेश कहते हैं,'बाबू मोशाय, मुझसे मेरे फैन्स [पंखे] कोई नहीं ले सकता! तो दीवानगी नहीं दुख के आसू छलक पड़ते हैं।
बनारस में न बना सके जय-जय शिवशंकर
वाराणसी। भारतीय सिनेमा के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना की बनारस की मस्ती को लेकर फिल्म बनाने की इच्छा अधूरी रह गई। राजेश खन्ना यहां की संस्कृति व जिंदादिली को लेकर 'जय-जय शिवशंकर' नाम से फिल्म बनाना चाहते थे।
फिल्म निर्माण के लिए 90 के दशक में वह कई बार बनारस आए भी थे। ंमित्रों के साथ गंगा घाट, मंदिरों समेत कई लोकेशन भी देखी, डिंपल कपाड़िया के साथ फिल्म के कुछ अंश शूट भी किए गए लेकिन राजनीति व हाथ से फिसल रहे स्टारडम के बीच काका ऐसा फंसे कि फिल्म पूरा करने की उनकी तमन्ना दिल में ही रह गई। फिल्म का आइडिया हिट फिल्म 'आप की कसम' के सुपर डुपर हिट गाने 'जय-जय शिवशंकर कांटा लगे ना कंकर' के बाद उन्हें आया। मुमताज व राजेश खन्ना पर फिल्माया गया गाना इतना लोकप्रिय है कि आज भी लोग इसे तबीयत से सुनते हैं।
बाबू मोशाय
राजेश खन्ना 90 के दशक में कई बार बनारस आए। जब भी यहां आते शिवाला क्षेत्र के असलम परवेज के यहां जरूर जाते। असलम बताते हैं कि काका से पहली मुलाकात 1990 में दिल्ली में सामाजिक कार्यक्रम में हुई। काका से जो मिला उनकी जिंदादिली का दीवाना हो गया। वे जिस महफिल में बैठते वहां रौनक छा जाती। अक्सर वह 'आनंद' का डायलाग 'बाबू मोशाय, हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं, जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथ में है, कौन कब कहां उठ जाएगा, कोई नहीं जानता' सुनाते।
बिरयानी खाने मुंबई से आए
राजेश खन्ना दोस्ती निभाना खूब जानते थे। 1996 में राजेश खन्ना अंतिम बार बनारस आए थे, वह भी सिर्फ बिरयानी खाने के लिए। असलम बताते हैं ईद पर सुबह-सुबह काका का फोन आया। ईद की बधाई देते हुए कहा बिरयानी खाने आ रहा हूं। कूलर की हवा में उन्होंने घर पर बड़े चाव से बिरयानी खाई। वे जब भी बनारस आते सुबह की कचौड़ी-जलेबी का स्वाद जरूर चखते और यहां का पान तो उनकी जुबां पर हमेशा रहता।
चुनाव से पहले लिया बाबा का आशीर्वाद
फिल्म से राजनीति में उतरने का फैसला जब उन्होंने लिया तो उनके चाहनेवालों ने कहा कि बाबा विश्वनाथ के आशीर्वाद के बिना कुछ संभव नहीं। उन्होंने मई में तपती गर्मी की परवाह किए बगैर बाबा दरबार के साथ ही मां विंध्यवासिनी के दरबार में मत्था टेका।
कैंसर की पीड़ा साझा की थी मुमताज से
लंदन। राजेश खन्ना के निधन की खबर मिलने पर भावुक हो उठीं मुमताज ने कहा है कि दूसरों के साथ बहुत ज्यादा नहीं घुलने-मिलने वाले काका उनके बेहद करीब थे। फिल्मी पर्दे की सबसे हिट जोड़ी के तौर पर दोनों ने आपकी कसम, रोटी, अपना देश, सच्चा झूठा समेत दस सुपरहिट फिल्में दीं।
अपने परिवार के साथ लंदन में रह रही मुमताज ने बताया कि उन्हें इस बात का संतोष है कि वह पिछले महीने उनसे मिली थीं। उस दौरान दोनों ने कैंसर से अपनी-अपनी लड़ाई की बात की। हालांकि खन्ना के परिवार ने कभी उनकी बीमारी के बारे में कोई जानकारी नहीं दी।
स्तन कैंसर से अपनी लड़ाई जीतने वाली मुमताज ने कहा, 'उन्होंने मुझसे कहा था कि मैं बहुत मजबूत हूं और वह जानते थे कि कीमोथेरेपी के दौरान मैं किस पीड़ा से गुजरी थी। उनके लिए ऑर्डर किए गए बहुत सारे व्यंजनों के बारे में मजाक करने पर उन्होंने कहा था कि उन्हें भूख महसूस नहीं होती। उस दिन सभी ने खाया, लेकिन काका ने नहीं।'
मुमताज ने बताया कि बीमारी की हालत में भी राजेश जिंदादिल थे। मजाक करना, ठहाके लगाकर हंसना उनकी आदत थी जो उस समय भी कायम थी। मुमताज कहती हैं कि उनके लिए यह गर्व की बात है कि जिन फिल्मों में उन्होंने साथ काम किया वे सभी सुपरहिट रहीं। राजेश के साथ मेरी कई यादें हैं। रोटी फिल्म की शूटिंग के दौरान बर्फ में मुझे उठाकर चलना उनके लिए कठिन काम था। उस एक सप्ताह के दौरान जब भी हम शूटिंग करते मैं उनसे मजाक करती थी कि अब आपको 100 किलोग्राम का वजन उठाना होगा और वह कहते थे कि नहीं इतनी भी भारी नहीं हो। पर मुझे मालूम है मैं कभी भी दुबली नहीं थी। पिछले हफ्ते दारा सिंह की मौत पर शोक व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि इस दौरान बॉलीवुड के कई दिग्गजों ने दुनिया छोड़ दी। राजेश के करोड़ों चाहने वालों के लिए यह एक मुश्किल समय है। नियति पर किसी का कोई वश नहीं है। राजेश के जाने से मैं बेहद दुखी हूं...देखी जमाने की यारी बिछड़े सभी बारी-बारी...।
आखिरी दिनों में साथ रहा परिवार
गत अप्रैल में बीमारी बढ़ने के बाद से राजेश खन्ना को तीमारदारी और देखभाल की जरूरत बढ़ गई थी। तीमारदारी तो नर्स और सेवक कर देते हैं, लेकिन देखभाल और परिजनों के साथ का कोई विकल्प नहीं होता। ऐसे वक्त में उनकी पत्नी डिंपल कपाड़िया फिर से साथ आई। वह नियमित रूप से कुछ घंटे काका के साथ बिताती थीं। फिल्म इंडस्ट्री के परिचितों को उनकी तबियत की सही जानकारी देने से लेकर अस्पताल लाने-ले जाने की जिम्मेदारी भी उन्होंने संभाली। उनकी छोटी बेटी रिंकी तो लंदन में रहती है, लेकिन बड़ी बेटी ट्विंकल और दामाद अक्षय कुमार हमेशा उनके साथ रहे। कुछ समय पहले खबर आई थी कि राजेश के स्वास्थ्य लाभ और मंगल कामना के लिए 'आशीर्वाद' में हवन किया गया। इस हवन का इंतजाम डिंपल और उनके दामाद ने ही किया था। अक्षय अपनी फिल्मी व्यस्तता से समय निकालकर उनकी देखभाल करते रहे।
यहां तक कि कुछ वर्षो पहले जब 'आशीर्वाद' के बिकने की खबर आई थी तो अक्षय ने अपनी पहल पर उसे बिकने से रोका था। सभी जानते हैं कि शादी के कुछ समय बाद ही डिंपल और राजेश मनमुटाव की वजह से अलग हो गए थे। राजेश ने स्वीकार किया था कि उन्हें पत्नी के रूप में बच्चों की मां चाहिए थी। 'बॉबी' उनकी शादी के बाद रिलीज हुई थी। डिंपल की लोकप्रियता देख कर वह भी दंग रह गए थे, लेकिन तब तक सब कुछ बदल चुका था। अपनी व्यस्तता की वजह से काका डिंपल को समय और ध्यान भी नहीं दे पाते थे। धीरे-धीरे मनमुटाव बढ़ा और दोनों अलग रहने लगे। दोनों बेटियों की वजह से उन्होंने तलाक नहीं लिया। उम्र बढ़ने के बाद परिपक्वता आई तो दोनों की परस्पर समझदारी बढ़ी। फिर भी वे अलग-अलग छतों के नीचे ही रहे। 1989 के बाद दोनों का संपर्क बढ़ा। डिंपल कपाड़िया ने बीमारी और दुख के दिनों में काका का साथ दिया। उन्हें संभाले रखा।
1965 में राजेश खन्ना ने यूनाइटेड प्रड्यूर्स ऐंड फिल्मफेयर के प्रतिभा खोज अभियान में बाजी मारी। उनकी पहली फिल्म चेतन आनंद निर्देशित 'आखिरी खत' थी। दूसरी फिल्म मिली 'राज' भी प्रतियोगिता जीतने का ही पुरस्कार थी। उस दौर में दिलीप कुमार और राज कपूर के अभिनय का डंका बजता था, किसी को अहसास भी नहीं था कि एक 'नया सितारा' शोहरत की बुलंदियां छूने के लिए बढ़ रहा है। राजेश खन्ना ने 'बहारों के सपने', 'औरत', 'डोली' और 'इत्तेफाक' जैसी शुरुआती सफल फिल्में दीं, लेकिन 1969 में आई 'आराधना' ने बॉलिवुड में 'काका' के दौर की शुरुआत कर दी। 'आराधना' में राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर की जोड़ी ने सिल्वर स्क्रीन पर रोमांस और जज्बातों का ऐसा चित्रण किया कि युवतियों की रातों की नींद उड़ने लगी और 'काका' प्रेम का नया प्रतीक बन गए।
किशोर बन गए आवाज
'आराधना' से किशोर कुमार जैसे गायक को भी बॉलिवुड में स्थापित होने का मौका मिला और फिर वह राजेश खन्ना के गीतों की आवाज बन गए। अदाकारी और आवाज की इस जुगलबंदी ने बॉलिवुड को 'मेरे सपनों की रानी', 'रूप तेरा मस्ताना', 'कुछ तो लोग कहेंगे', 'जय जय शिवशंकर' और 'जिंदगी कैसी है पहेली' जैसे कालजयी गाने दिए। 'आराधना' और 'हाथी मेरे साथी' ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के सारे रेकॉर्ड तोड़ दिए। उन्होंने 163 फिल्मों में काम किया, जिनमें 106 फिल्मों को उन्होंने सिर्फ अपने दम पर सफलता दिलाई, 22 फिल्मों में उनके साथ उनकी टक्कर के अन्य नायक भी थे।
आज तक नहींटूटा रेकॉर्ड
राजेश खन्ना ने 1969 से 1972 के बीच लगातार 15 सुपरहिट फिल्में दीं। इस रेकॉर्ड को आज तक कोई नहीं तोड़पाया, इसके बाद बॉलिवुड में 'सुपरस्टार' का आगाज हुआ। उन्हें तीन बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्मफेयरअवॉर्ड से नवाजा गया। इस पुरस्कार के लिए उनका 14 बार नामांकन हुआ। उन्हें 2005 में 'फिल्मफेयरलाइफटाइम अचीवमेंट' अवॉर्ड दिया गया। रोमांटिक छवि के बावजूद उन्होंने विविधतापूर्ण रोल किए, जिनमेंलाइलाज बीमारी से जूझता आनंद, 'बावर्ची' का खानसामा, 'अमर प्रेम' का अकेला पति और 'खामोशी' केमानसिक रोगी की भूमिका थी। बॉलिवुड का यह स्वर्णिम दौर था और राजेश खन्ना की अदाकारी के लिए यहसोने पर सुहागा साबित हुआ और उन्हें अपने समय के कला पारखियों के साथ काम करने का मौका मिला।
एक से ए क हिट फिल्में
'अमर प्रेम' और 'आप की कसम' जैसी फिल्मों में राजेश खन्ना की शर्मिला टैगोर और मुमताज के साथ ऐसी'केमेस्ट्री' बनी कि इन्होंने कई सुपरहिट फिल्में दीं। उनकी प्रतिभा को शक्ति सामंत, यश चोपड़ा, मनमोहन देसाई,ऋषिकेश मुखर्जी, रमेश सिप्पी ने और निखारा। आर. डी. बर्मन और किशोर कुमार के साथ उन्होंने 30 से अधिकफिल्मों में काम किया। राजेश खन्ना की फिल्में 1976-78 के दौरान पहले सी सफलता हासिल नहीं कर पाईं।1978 के बाद उन्होंने 'फिर वही रात', 'दर्द', 'धनवान', 'अवतार' और 'अगर तुम ना होते' जैसी फिल्में कीं, जोकमाई के लिहाज से सफल नहीं थीं, लेकिन आलोचकों ने जरूर सराहा।
सुपरस्टार के सुपरअफेयर
उनके व्यक्तित्व ने न केवल प्रशंसकों को दीवाना बनाया, बल्कि सुनहरे दिनों में अभिनेत्रियों पर भी उनका जादूचला। 70 के दशक में पहले उनका अंजू महेंद्रू के साथ अफेयर चला, फिर 1973 में उन्होंने अपने से 15 सालछोटी डिंपल कपाडि़या से शादी कर ली। उनकी दो बेटियां ट्विंकल और रिंकी हैं, डिंपल कपाडि़या 1984 मेंराजेश खन्ना से अलग हो गईं। हालांकि, उन्होंने कभी औपचारिक रूप से तलाक नहीं लिया। राजेश खन्ना का नाम'सौतन' की नायिका टीना मुनीम से भी जुड़ा। इस जोड़ी ने 'फिफ्टी फिफ्टी', 'बेवफाई', 'सुराग', 'इंसाफ मैं करूंगा'तथा 'अधिकार' जैसी फिल्में दीं।
सांस दराजेश खन्ना
1992 से लेकर 1996 तक राजेश खन्ना लोकसभा के सदस्य रहे। वह कांग्रेस के टिकट पर नई दिल्ली सीट से जीतेथे। जब वह सांसद थे, तो उन्होंने अपना पूरा समय राजनीति को दिया और अभिनय की पेशकशों को ठुकरादिया। उन्होंने वर्ष 2012 के आम चुनाव में भी पंजाब में कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार किया था।
(सभी जानकारी इन्टरनेट द्वारा ली गयी है जो विभिन्न अखवारो द्वारा प्रकाशित एवं पोस्ट किया गया है। संकलन किया है रंजन कुमार भारती ने)
1965 में राजेश खन्ना ने यूनाइटेड प्रड्यूर्स ऐंड फिल्मफेयर के प्रतिभा खोज अभियान में बाजी मारी। उनकी पहली फिल्म चेतन आनंद निर्देशित 'आखिरी खत' थी। दूसरी फिल्म मिली 'राज' भी प्रतियोगिता जीतने का ही पुरस्कार थी। उस दौर में दिलीप कुमार और राज कपूर के अभिनय का डंका बजता था, किसी को अहसास भी नहीं था कि एक 'नया सितारा' शोहरत की बुलंदियां छूने के लिए बढ़ रहा है। राजेश खन्ना ने 'बहारों के सपने', 'औरत', 'डोली' और 'इत्तेफाक' जैसी शुरुआती सफल फिल्में दीं, लेकिन 1969 में आई 'आराधना' ने बॉलिवुड में 'काका' के दौर की शुरुआत कर दी। 'आराधना' में राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर की जोड़ी ने सिल्वर स्क्रीन पर रोमांस और जज्बातों का ऐसा चित्रण किया कि युवतियों की रातों की नींद उड़ने लगी और 'काका' प्रेम का नया प्रतीक बन गए।
किशोर बन गए आवाज
'आराधना' से किशोर कुमार जैसे गायक को भी बॉलिवुड में स्थापित होने का मौका मिला और फिर वह राजेश खन्ना के गीतों की आवाज बन गए। अदाकारी और आवाज की इस जुगलबंदी ने बॉलिवुड को 'मेरे सपनों की रानी', 'रूप तेरा मस्ताना', 'कुछ तो लोग कहेंगे', 'जय जय शिवशंकर' और 'जिंदगी कैसी है पहेली' जैसे कालजयी गाने दिए। 'आराधना' और 'हाथी मेरे साथी' ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के सारे रेकॉर्ड तोड़ दिए। उन्होंने 163 फिल्मों में काम किया, जिनमें 106 फिल्मों को उन्होंने सिर्फ अपने दम पर सफलता दिलाई, 22 फिल्मों में उनके साथ उनकी टक्कर के अन्य नायक भी थे।
आज तक नहींटूटा रेकॉर्ड
राजेश खन्ना ने 1969 से 1972 के बीच लगातार 15 सुपरहिट फिल्में दीं। इस रेकॉर्ड को आज तक कोई नहीं तोड़पाया, इसके बाद बॉलिवुड में 'सुपरस्टार' का आगाज हुआ। उन्हें तीन बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्मफेयरअवॉर्ड से नवाजा गया। इस पुरस्कार के लिए उनका 14 बार नामांकन हुआ। उन्हें 2005 में 'फिल्मफेयरलाइफटाइम अचीवमेंट' अवॉर्ड दिया गया। रोमांटिक छवि के बावजूद उन्होंने विविधतापूर्ण रोल किए, जिनमेंलाइलाज बीमारी से जूझता आनंद, 'बावर्ची' का खानसामा, 'अमर प्रेम' का अकेला पति और 'खामोशी' केमानसिक रोगी की भूमिका थी। बॉलिवुड का यह स्वर्णिम दौर था और राजेश खन्ना की अदाकारी के लिए यहसोने पर सुहागा साबित हुआ और उन्हें अपने समय के कला पारखियों के साथ काम करने का मौका मिला।
एक से ए क हिट फिल्में
'अमर प्रेम' और 'आप की कसम' जैसी फिल्मों में राजेश खन्ना की शर्मिला टैगोर और मुमताज के साथ ऐसी'केमेस्ट्री' बनी कि इन्होंने कई सुपरहिट फिल्में दीं। उनकी प्रतिभा को शक्ति सामंत, यश चोपड़ा, मनमोहन देसाई,ऋषिकेश मुखर्जी, रमेश सिप्पी ने और निखारा। आर. डी. बर्मन और किशोर कुमार के साथ उन्होंने 30 से अधिकफिल्मों में काम किया। राजेश खन्ना की फिल्में 1976-78 के दौरान पहले सी सफलता हासिल नहीं कर पाईं।1978 के बाद उन्होंने 'फिर वही रात', 'दर्द', 'धनवान', 'अवतार' और 'अगर तुम ना होते' जैसी फिल्में कीं, जोकमाई के लिहाज से सफल नहीं थीं, लेकिन आलोचकों ने जरूर सराहा।
सुपरस्टार के सुपरअफेयर
उनके व्यक्तित्व ने न केवल प्रशंसकों को दीवाना बनाया, बल्कि सुनहरे दिनों में अभिनेत्रियों पर भी उनका जादूचला। 70 के दशक में पहले उनका अंजू महेंद्रू के साथ अफेयर चला, फिर 1973 में उन्होंने अपने से 15 सालछोटी डिंपल कपाडि़या से शादी कर ली। उनकी दो बेटियां ट्विंकल और रिंकी हैं, डिंपल कपाडि़या 1984 मेंराजेश खन्ना से अलग हो गईं। हालांकि, उन्होंने कभी औपचारिक रूप से तलाक नहीं लिया। राजेश खन्ना का नाम'सौतन' की नायिका टीना मुनीम से भी जुड़ा। इस जोड़ी ने 'फिफ्टी फिफ्टी', 'बेवफाई', 'सुराग', 'इंसाफ मैं करूंगा'तथा 'अधिकार' जैसी फिल्में दीं।
सांस दराजेश खन्ना
1992 से लेकर 1996 तक राजेश खन्ना लोकसभा के सदस्य रहे। वह कांग्रेस के टिकट पर नई दिल्ली सीट से जीतेथे। जब वह सांसद थे, तो उन्होंने अपना पूरा समय राजनीति को दिया और अभिनय की पेशकशों को ठुकरादिया। उन्होंने वर्ष 2012 के आम चुनाव में भी पंजाब में कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार किया था।
(सभी जानकारी इन्टरनेट द्वारा ली गयी है जो विभिन्न अखवारो द्वारा प्रकाशित एवं पोस्ट किया गया है। संकलन किया है रंजन कुमार भारती ने)