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कारगिल  युद्ध  की ग्यारहवी वर्षी  है । यह वही लड़ाई थी जिसमें पाकिस्तानी सेना ने द्रास-कारगिल की पहाड़ियों पर कब्जा करने की कोशिश की थी। भारतीय सेनाओं ने इस लड़ाई में पाकिस्तानी सेना तथा मुजाहिदीनों के रूप में उसके पिट्ठुओं को परास्त किया। आम तौर पर कारगिल युद्ध को भी 1947-48 तथा 1965 में पाकिस्तानी सेना द्वारा कबीलाइयों की मदद से कश्मीर पर कब्जा करने की कोशिशों के एक अंग के रूप में देखने की प्रवृत्ति रही है। वास्तव में कारगिल युद्ध कश्मीर हथियाने और भारत को अस्थिर करने के जिहादियों के 20 वर्ष से जारी अभियान का एक महत्वपूर्ण बिंदु है और यह अनेक मामलों में पहले की दोनों लड़ाइयों से भिन्न है। यह युद्ध तब लड़ा गया जब पाकिस्तान ने नाभिकीय हथियार प्राप्त कर लिए थे और इस प्रकार इस्लामाबाद ने भारत के साथ एक प्रकार के प्रतिरोधक संबंध विकसित कर लिए थे। पाकिस्तान के पास दसियों हजार मुजाहिदीन भी थे, जो उसके एक इशारे पर भारत के खिलाफ जूझने के लिए तैयार थे। इन मुजाहिदीनों को कट्टरपंथ का पाठ पढ़ाकर लड़ाई के लिए तैयार किया गया था। एक बिंदु पर उन्हें सीआईए का समर्थन भी मिलता रहा और सऊदी अरब से धन भी। मुजाहिदीनों में पश्तून आदिवासी, अरब, मध्य एशियाई और अन्य स्थानों के मुस्लिम शामिल हैं। पाकिस्तान ने जब से नाभिकीय हथियार प्राप्त किए हैं तब से ही वह कश्मीर को हथियाने का सपना देखता रहा है। वे कहते भी हैं कि हमारे नाभिकीय हथियार भारत का मुकाबला करने के लिए हैं। कुछ अन्य लोग यह भी कहने का साहस रखते हैं कि नाभिकीय हथियार वह छाता हैं जिनके अंदर पाकिस्तान कश्मीर मामला फिर से खोल सकता है। उन्हें यह भरोसा है कि नाभिकीय हथियारों के कारण वे भारत की बराबरी पर आ गए हैं। इनकी मदद से पाकिस्तान का इरादा तब कश्मीर पर कब्जा जमाने की कोशिश करना है जब भारतीय नेतृत्व कमजोर और अनिर्णय की स्थिति में हो।
इस दृष्टिकोण के साथ पाकिस्तान ने उस समय अपना अभियान आगे बढ़ाने का फैसला किया जब दिसंबर 1989 में वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता संभाली। तब पाकिस्तान ने सैकड़ों घुसपैठिए कश्मीर में भेज दिए। इसके साथ ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री याकूब खान ने नाभिकीय धमकी भी दी। वीपी सिंह सरकार न तो कमजोर साबित हुई और न ही अनिर्णय की शिकार। 1991 से 1999 के बीच पाकिस्तान ने कश्मीर में अनगिनत जिहादी अभियान चलाए, जिनमें सैकड़ों निर्दोष लोग और सुरक्षा कर्मी मारे गए। फिर भी पाकिस्तान को सफलता नहींमिली। 1998 में भारत के नाभिकीय परीक्षण के बाद पाकिस्तान ने भी ऐसा ही किया। इस समय तक पाकिस्तान ने काबुल में अपनी कठपुतली तालिबानी सत्ता स्थापित कर दी थी। ओसामा बिन लादेन अफगानिस्तान में बहुत अधिक मजबूत हो गया था। इसके साथ ही कश्मीर में आतंक फैला रहे संगठन भी लादेन के जिहादी आतंक का हिस्सा बन गए। कश्मीर में लश्कर, हरकत उल मुजाहिदीन, जैशे मोहम्मद और ऐसे ही अन्य आतंकी संगठनों की मौजूदगी में पाकिस्तान ने कारगिल घुसपैठ के जरिए कश्मीर को हड़पने की कोशिश की। पाकिस्तान यह भी जानना चाहता था कि नई दिल्ली में भाजपा नीत राजग सरकार मजबूत है या नहीं? पाकिस्तानी सेना को लाहौर शांति प्रक्रिया से यह भ्रम हो गया कि भारत में एक कमजोर सरकार सत्ता में है। नवाज शरीफ ने बाद में भले ही खुद को कारगिल प्रकरण से अलग करने की कोशिश की हो, लेकिन यह यथार्थ है कि वह कश्मीर पर कब्जा जमाने की इस कोशिश में अपनी सेना के साथ थे। भारत में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने न केवल कारगिल हमले का अत्यंत मजबूती से जवाब दिया, बल्कि अतुलनीय संयम का परिचय देते हुए अंतरराष्ट्रीय ख्याति भी बटोरी। सभी बड़े देशों ने वाजपेयी सरकार के रुख की सराहना की। कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ को विफल बनाने के लिए भारतीय थल सेना और वायुसेना ने समन्वय से कार्य किया और उन घुसपैठियों को उखाड़ फेंका जो कश्मीर को हड़पने का मंसूबा पाले हुए थे। महत्वपूर्ण यह था कि भारतीय सेनाओं ने हमले का जवाब देते हुए एक बार भी नियंत्रण रेखा पार नहीं की। पाकिस्तान को यह उम्मीद थी कि वह इस प्रकरण के साथ कश्मीर मामले का अंतरराष्ट्रीयकरण करने के साथ इसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले जाने में सफल रहेगा, लेकिन उसका यह मंसूबा भी इसलिए धरा रह गया, क्योंकि संघर्ष पूरी तरह भारतीय सीमा क्षेत्र में हो रहा था। उस समय भारत की तीनों सेनाएं पाकिस्तान के किसी अन्य बड़े हमले का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार थीं। कारगिल मामले में पाकिस्तान कूटनीतिक रूप से पूरी तरह अलग-थलग हो गया। भारतीय वायुसेना की सक्रियता के कारण पाकिस्तानी सेना आगे बढ़ने में पूरी तरह असफल हो गई। कारगिल में पाकिस्तान का दुस्साहस उसके लिए बेहद अपमानजनक स्थितियों में समाप्त हुआ।
इसके बाद ही पाकिस्तानी सेना ने अपने यहां निर्वाचित सरकार को उखाड़ फेंका। पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर पर कब्जा जमाने के अपने मिशन को त्यागा नहीं है। जिहादी आतंकवाद उसके लिए अभी भी इस मिशन को पूरा करने का माध्यम बना हुआ है। मुंबई में हुआ आतंकी हमला भी समुद्र मार्ग से पाकिस्तान की तरफ से आए जिहादियों का कारगुजारी थी। कारगिल युद्ध पाकिस्तानी सेना द्वारा छद्म रूप से चलाए गए अभियान की न तो शुरुआत थी और न ही अंत। इस युद्ध में भारत की जीत ने पाकिस्तानी सेना को यह सबक जरूर दिया कि वह सीधे तौर पर किसी लड़ाई में भारत को पराजित नहीं कर सकती, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि आईएसआई और पाकिस्तानी सेना ने भारत को रक्तरंजित करने के अपने मंसूबे त्याग दिए हैं। कारगिल युद्ध अमेरिका के दृढ़ और निष्पक्ष रुख के लिए भी याद किया जाएगा, जो भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में सुधार का प्रस्थान बिंदु भी बना।

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