page contents KARJAIN BAZAR
किसी भी शुभ अवसर पर वीडियोग्राफी एवं मिक्सिंग हेतु आज ही संपर्क करें ! आर. के. फिल्म्स ,करजाइन बाजार,मोबाइल -993480446

.

करजाइन बाज़ार के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है !!
                                      रक्षा बंधन पर विशेष 

बहना ने भाई की कलाई से प्यार बाँधा है, प्यार के दो तार से संसार बाँधा है... सुमन कल्याणपुर द्वारा गाया गया यह गाना रक्षाबंधन का बेहद चर्चित गाना है। भले ही ये गाना बहुत पुराना न हो पर भाई की कलाई पर राखी बाँधने का सिलसिला बेहद प्राचीन है। रक्षाबंधन का इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है। वह भी तब जब आर्य समाज में सभ्यता की रचना की शुरुआत मात्र हुई थी। 

रक्षाबंधन पर्व पर जहाँ बहनों को भाइयों की कलाई में रक्षा का धागा बाँधने का बेसब्री से इंतजार है, वहीं दूर-दराज बसे भाइयों को भी इस बात का इंतजार है कि उनकी बहना उन्हें राखी भेजे। उन भाइयों को निराश होने की जरूरत नहीं है, जिनकी अपनी सगी बहन नहीं है, क्योंकि मुँहबोली बहनों से राखी बंधवाने की परंपरा भी काफी पुरानी है। 


असल में रक्षाबंधन की परंपरा ही उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं। भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो लेकिन उसी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है। इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत की उत्पत्ति लगभग 6 हजार साल पहले बताई गई है। इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।







 राखी का क्या मतलब है ? 

राखी के त्योहार को रक्षाबन्धन भी कहते हैँ| राखी एक धागे की डोर है जिसको बहन भाई की कलाई पर प्रेम पूर्वक बाधती है और सदा विजयी होने का आर्शीवाद देती है| भाई बहन की रक्षा के बन्धन में डोर से लिपट जाता है| यह त्योहार बहन भाई के रिश्ते को सदा जीवित रखता है और प्रेम में बान्धे रखता है| 

इस त्योहार के साथ भी कई कहानियाँ जुडी हुई हैं कि कैसे यह त्योहार मनाना शुरु हुआ| एक बार राजा इन्द्र की राक्षसों से लडाई छिड गई| लडाई कई दिनों तक होती रही| न राक्षस हारने में आते थे, न इन्द्र जीतते दिखाई देते थे| इन्द्र बडे सोच मे पडे| वह अपने गुरु वृहस्पति के पास आकर बोले ,"गुरुदेव, इन राक्षसो से मैं न जीत सकता हूँ न हार सकता हूँ | न मैं उनके सामने ठहर सकता हूँ न भाग सकता हूँ| इसलिये मैं आपसे अन्तिम बार आर्शीवाद लेने आया हूँ| अगर अबकी बार भी मैं उन्हें हरा न सका तो युद्ध में लडते लडते वहीं प्राण दे दूँगा | 


इन्द्र को राखी किसने बांधी ? 

उस समय इन्द्राणी भी पास बैठी हुई थी इन्द्र को घबराया हुआ देखकर बोली, " पतिदेव, मै ऐसा उपाय बताती हूँ जिससे इस बार आप अवश्य लडाई में जीतकर आयेगे| इसके बाद इन्द्राणी ने गायत्री मंत्र पढ़कर इन्द्र के दाहिने हाथ मे एक डोरा बाँध दिया और कहा, पतिदेव यह रक्षाबन्धन मै आपके हाथ में बाँधती हूँ| यह रक्षा का बन्धन आपके हाथ में बांधती हूँ| इस रक्षाबन्धन को पहन कर एक बार फिर युद्ध में जाये | इस बार अवश्य ही आपकी विजय होगी| इन्द्र अपनी पत्नी की बात को गाँठ बांधकर और रक्षा बन्धन को हाथ में बधवाकर चल पडा| इस बार लडाई के मैदान में इन्द्र को ऐसा लगा जैसे वह अकेला नही लड रहा इन्द्राणी भी कदम से कदम मिलाकर उसके साथ लड रही है| उसे ऍसा लगा कि रक्षाबन्धन का एक एक तार ढ़ाल बन गया है और शत्रुओं से उसकी रक्षा कर रहा है| इन्द्र जोर शोर से लडने लगा| इस बार सचमुच इन्द्र की विजय हुई | तब से लेकर रक्षाबन्धन का त्योहार चल पडा| यह त्योहार सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है इसलिये इसे सावनी या सूलनो भी कहते है| 


इसके अतिरिक्त और भी कोई राखी की कहानी है क्या? 

 हाँ और भी इसका महत्व हैजो कि हमारे ऋषि मुनियों ने समझा सावन का महिना ऋषि मुनि लोग गाँवों और नगरौ मे बिताते थे| वह लोगो को उपदेश देते थे| लोग गुरु मंत्र लेने के लिये यज्ञ में आते थे| ऋषि लोग सच्चाई पर चलने का अच्छे कर्म करने का उपदेश देते थे| उस बात का संकल्प करने के लिये वे भक्तो के दाये हाथ मे मौली के धागे से गाँठ और गले मे जनेऊ की गाँठ बाँध देते थे जो उन्हें जिन्दगी मे कदम कदम पर गुरु शिक्षा की याद दिलाती रहती थीकि कहीं अपना वायदा न भूलें| सच्चाई और अच्छाई की राह पर चलने का| आजकल पुरोहित लोग अपनें यजमानों को राखी बाँधते है| 

 बहने कब से भाई को राखी बाँधने लगी यह कब से आरम्भ हुआ ? 

वास्तव मे बहन के भाई को राखी बाँधने की प्रथा राजस्थान से शुरु हुई |उनमे यह रिवाज हो गया है कि यदि किसी औरत पर कोई मुसीवत आती थी तो वह किसी वीर पुरुष को अपना भाई कहकर राखी भेज दिया करती थौ | राखी का मत होता था बहिन की रक्षा का भार उठाना | कहते हैं कि एक बार रानी कर्णवती ने बादशाह हुमायूं को इसी उद्देश्य से राखी भेजी थी | वह मुसलमान था फिर भी राखी का न्योता पाकर वह अपनी मुँह बाली बहिन की रक्षा के लिये चल पडा था | तब से बहिनें अपने भाइयों के हाथों में राखी बाधने लगी है| 

आजकल राखौ के दिन सुन्दर सुन्दर राखियाँ बनाई जाती हैं| घरों में मीठे भोजन और पकवान बनाये जाते है| बहिनें भाइयों के राखी बाँधती हैं| रक्षाबन्धन का त्योहार बहन भाइयों के रिश्ते को मजबूत करता है| राखी के त्योहार का अर्थ बहुत गहरा है| यह एक दूसरे के प्रति प्यार, विश्चास, आशा. बलिदान , को जाग्रत करता है|ऍसी भावनाओ को पैदा करता है कि बहन अपने भाई के लिये सदा मंगल कामना करती है व भाई बहिन के लिये रक्षा के वायदे करता है| बहिन तरह तरह की मिठाइयाँ प्यार से बटोर कर भाई को केसर का टीका लगाकर राखी को प्यार के डोरो को भाई की कलाई पर बांधती है और आर्शीवाद देती है भाई बहिन को आर्शीवाद देता है व भेंट मे कुछ उपहार देता है| तरह तरह के पकवान बनाये जाते है| सब खुशी से खाते पीते है |यह प्यार का त्योहार है जो रिश्ते नाते जोडता है| 





रक्षाबंधन की शुरुआत का सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती व सम्राट हुमायूँ हैं। मध्यकालीन युग में राजपूत व मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्णावती चितौड़ के राजा की विधवा थीं। उस दौरान गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हुमायूँ को राखी भेजी थी। तब हुमायूँ ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था। 

ND
दूसरा उदाहरण अलेक्जेंडर व पुरू के बीच का माना जाता है। कहा जाता है कि हमेशा विजयी रहने वाला अलेक्जेंडर भारतीय राजा पुरू की प्रखरता से काफी विचलित हुआ। इससे अलेक्जेंडर की पत्नी काफी तनाव में आ गईं थीं। 

उसने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुना था। सो, उन्होंने भारतीय राजा पुरू को राखी भेजी। तब जाकर युद्ध की स्थिति समाप्त हुई थी। क्योंकि भारतीय राजा पुरू ने अलेक्जेंडर की पत्नी को बहन मान लिया था। 

ND
इतिहास का एक अन्य उदाहरण कृष्ण व द्रोपदी को माना जाता है। कृष्ण भगवान ने दुष्ट राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएँ हाथ की अँगुली से खून बह रहा था। इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की अँगुली में बाँधा जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। 

तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। वर्षों बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।





क्या है रक्षा बंधन 
रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर बलि राजा के अभिमान को इसी दिन चकानाचूर किया था। इसलिए यह त्योहार 'बलेव' नाम से भी प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र राज्य में नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से यह त्योहार विख्यात है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं।

रक्षाबंधन के संबंध में एक अन्य पौराणिक कथा भी प्रसिद्ध है। देवों और दानवों के युद्ध में जब देवता हारने लगे, तब वे देवराज इंद्र के पास गए। देवताओं को भयभीत देखकर इंद्राणी ने उनके हाथों में रक्षासूत्र बाँध दिया। इससे देवताओं का आत्मविश्वास बढ़ा और उन्होंने दानवों पर विजय प्राप्त की। तभी से राखी बाँधने की प्रथा शुरू हुई। दूसरी मान्यता के अनुसार ऋषि-मुनियों के उपदेश की पूर्णाहुति इसी दिन होती थी। वे राजाओं के हाथों में रक्षासूत्र बाँधते थे। इसलिए आज भी इस दिन ब्राह्मण अपने यजमानों को राखी बाँधते हैं।

रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाई को प्यार से राखी बाँधती है और उसके लिए अनेक शुभकामनाएँ करती है। भाई अपनी बहन को यथाशक्ति उपहार देता है। बीते हुए बचपन की झूमती हुई याद भाई-बहन की आँखों के सामने नाचने लगती है। सचमुच, रक्षाबंधन का त्योहार हर भाई को बहन के प्रति अपने कर्तव्य की याद दिलाता है।

राखी के इन धागों ने अनेक कुरबानियाँ कराई हैं। चित्तौड़ की राजमाता कर्मवती ने मुग़ल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर अपना भाई बनाया था और वह भी संकट के समय बहन कर्मवती की रक्षा के लिए चित्तौड़ आ पहुँचा था। आजकल तो बहन भाई को राखी बाँध देती है और भाई बहन को कुछ उपहार देकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेता है। लोग इस बात को भूल गए हैं कि राखी के धागों का संबंध मन की पवित्र भावनाओं से हैं।

फ्री विज्ञापन हेतु संपर्क करें